एक-एक दिन बस यूंही खिसक-खिसक कर चलती है
हर रोज़ कई मरतबे करवट बदलती है
जाने और क्या आस बची है
अब ज़िन्दगी, कुछ खास तो नहीं है
सूखी आँखों में अब नहीं है किसी का इंतज़ार
ठंडी पड़ चुकीं हैं साँसें
न कोई उद्देश्य है, न जीत न हार
बस मै हूँ, और टिक-टिक करते घड़ी के काँटे
सपनों की पोटली से
कुछ पत्थर उधार लिए हैं
कुछ ख्वाहिशें दफन की हैं
कुछ लम्हे भस्म किए हैं