Tuesday, January 14, 2025

My composition - Gustakhiyan, mannmarziyan, khudgarziya

 

Chalo aankho se hi aankho ke beech baatein kiye jayein

In lafzon ki in ankhon ko zarurat kya hai..


Tumhe ankho se bayaan kar de dil ke jazbaat-2

Kya pata kab ho, kabhi ya na ho dobara mulakat

Fir simat jane do palko me tumhari ye yaad-2



Inhe rasmo ki, riwazon ki, zamane ki kya fikar

Karti gustakhiyan, mannmarziyan, khudgarziyan aksar

In lamhon me jee lene do ek umar khulkar

Mera adhoora aasmaan..

Band ankho me jo aasman hai

Wo kabhi khuli ankho se dikh jaye

Barish ki boondon me ghulkar

Mere khwab nam kar jaye

Agar kabhi wo manzar mil jaye

Samajh lena, ek umar guzar gayi

Kuchh khwab nahi poore hua karte

Haqeeqat ka peechha karte karte


Lekin kitna bhi adhoora sahi

Mere andar ka aasmaan mera hai

Bhale hi kisi ko uski pehchan nahi

Mujhe pata hai, wo hi mera basera hai

Lagta namumkin ho aaj, lekin shayad kabhi

Taqdeer me raha, to ayega wo din bhi

Agosh me lekar, mera aasman mujhse poochhega

Mera rang bankar, mujh me ghulna chahoge kya 

Monday, January 13, 2025

Shared journey..

I wanted to say this, but never thought you would understand it. Wanted to say it in person, but have my reasons not to, now.

There are times in life, when you have everything, you're very well settled, have - a family, friends, job, success etc. etc., but you still feel alone deep inside. You need a friend to talk to, someone with whom you can share everything, without any filters. Someone, who doesn't expect anything in return, but is just there to listen. Someone who would not judge you, basis on the life you've spent achieving those childhood dreams and then finding yourself in a situation, where you dont know which way you're headed. 

Sometimes, people just stereotype you for the reputation you've built. Friends, family know you so well, that they stop seeing you, rather they just see the impression you have been living upto, since ages. You need someone who can see you from a fresh perspective. And in doing so, a surreal bond is created, where there are no expectations, no pre-concieved notions, just fresh perspectives, independent of the past and future.

I want to tread on this journey with you. Journey of being a true friend. 

Friday, August 9, 2024

फटे पुराने पन्नों से झाँकती ज़िंदगी

जिन उंगलियों को पकड़ कर चलना सीखा

जिन कंधों पर बैठ कर दुनिया देखी

आज वो उंगलियाँ बूढ़ी हो चलीं हैं

और कंधे झुके-झुके से दिखते हैं


उन आँखों में जब 

झाँक कर देखा, 

तो नज़र आया, बहुत दूर आ गए 

यूँ ही कतरा-कतरा चलते-चलते..


काश की ये ज़िंदगी भी कागज़ की होती

और हर दिन एक पन्ना

जिसे जब चाहो पलट लो

और जी लो


लिख लो फिर से उस दिन को

एक नई तरह से

पेंसिल की सियाही जैसे

गलती हो तो मिटा कर सही कर लो


दिल करता है 

एक बार फिर से मौका मिले तो

शायद कुछ बेहतर कर सकूँ

एक पन्ना बस, फिर से लिख लूँ


ज़िन्दगी के उस पार से इस पार

जाने कब आ गए

उनकी कहानियाँ पढ़ते-पढ़ते

जाने कब अपनी कहानी सुना गए


उन पन्नों में वो अनमोल यादें

जैसे बार-बार एक ही बात कहतीं हैं

उस कागज़ और सियाही के बीच भी

कई ज़िंदगियाँ रहती हैं


वो, जिनके बारें में कभी लिख ही नहीं पाए

जिन्हें सोंच में जगह मिली

लेकिन जिनको बयाँ कभी कर ही नहीं पाए

बस आँखों तक ही आकर रह गईं

 

Monday, January 23, 2023

तुम को क्या मालूम..

अधखिली सी इक कली

तुम को क्या मालूम

कीमत नहीं है कोई

जो चुरा ले जाए कोई भंवरा

तुमसे तुम्हारी सादगी


तरस जाती होंगी 

वो ओस की बूंदे

हलके से छू लें जो कहीं

झुलस न जाए

रेशम सी नाज़ुक पंखुड़ी


रोक सका है क्या

न रोक सकेगा कभी

तुम्हारी महक

तुम्हारी खूबसूरती

किसी खुदा की कायनात नहीं

Thursday, December 22, 2022

सपनो की पोटली

एक-एक दिन बस यूंही खिसक-खिसक कर चलती है

हर रोज़ कई मरतबे करवट बदलती है

जाने और क्या आस बची है

अब ज़िन्दगी, कुछ खास तो नहीं है

सूखी आँखों में अब नहीं है किसी का इंतज़ार

ठंडी पड़ चुकीं हैं साँसें 

न कोई उद्देश्य है, न जीत न हार

बस मै हूँ, और टिक-टिक करते घड़ी के काँटे

सपनों की पोटली से

कुछ पत्थर उधार लिए हैं

कुछ ख्वाहिशें दफन की हैं

कुछ लम्हे भस्म किए हैं

Monday, December 13, 2021

दो कदम

 दो कदम चल के तो देखो

साहिल शायद नज़र आए

दो कदम चल के तो देखो

शायद वक्त थम जाए

मुशिकुलों में उलझ कर

अंधेरों में झुलस कर

वैसे भी क्या ही पा लिया है

दो कदम चल के तो देखो

शायद वो नज़र आए

जिसे पाने की चाह में

धुआं बन गए हो तुम

दो कदम चल के तो देखो

शायद दो और कदम चलने की

हिम्मत मिल जाए


Sunday, January 6, 2019

नही पता..

नही पता
क्या सही
क्या गलत,
किसे पता
नहीं पता ।
है कारवां
जो चल पड़ा
बिना दिशा,
बिना राह,
जाना कहां
नही पता ।
है गुमशुदा
जो ख्वाब था
जो आग थी
जो नाज़ था
क्यों मिट गया
नहीं पता।
महसूस हो
वो कांच हूं
जलता रहा
जो आंख में
 क्यों ना दिखा
 नहीं पता।
 कल आएगा
 इस रात की
 होगी सुबह
 फिर क्या पता
ये संग रहा
नहीं पता।

My composition - Gustakhiyan, mannmarziyan, khudgarziya

  Chalo aankho se hi aankho ke beech baatein kiye jayein In lafzon ki in ankhon ko zarurat kya hai.. Tumhe ankho se bayaan kar de dil ke jaz...