Monday, January 23, 2023

तुम को क्या मालूम..

अधखिली सी इक कली

तुम को क्या मालूम

कीमत नहीं है कोई

जो चुरा ले जाए कोई भंवरा

तुमसे तुम्हारी सादगी


तरस जाती होंगी 

वो ओस की बूंदे

हलके से छू लें जो कहीं

झुलस न जाए

रेशम सी नाज़ुक पंखुड़ी


रोक सका है क्या

न रोक सकेगा कभी

तुम्हारी महक

तुम्हारी खूबसूरती

किसी खुदा की कायनात नहीं

Thursday, December 22, 2022

सपनो की पोटली

एक-एक दिन बस यूंही खिसक-खिसक कर चलती है

हर रोज़ कई मरतबे करवट बदलती है

जाने और क्या आस बची है

अब ज़िन्दगी, कुछ खास तो नहीं है

सूखी आँखों में अब नहीं है किसी का इंतज़ार

ठंडी पड़ चुकीं हैं साँसें 

न कोई उद्देश्य है, न जीत न हार

बस मै हूँ, और टिक-टिक करते घड़ी के काँटे

सपनों की पोटली से

कुछ पत्थर उधार लिए हैं

कुछ ख्वाहिशें दफन की हैं

कुछ लम्हे भस्म किए हैं

Monday, December 13, 2021

दो कदम

 दो कदम चल के तो देखो

साहिल शायद नज़र आए

दो कदम चल के तो देखो

शायद वक्त थम जाए

मुशिकुलों में उलझ कर

अंधेरों में झुलस कर

वैसे भी क्या ही पा लिया है

दो कदम चल के तो देखो

शायद वो नज़र आए

जिसे पाने की चाह में

धुआं बन गए हो तुम

दो कदम चल के तो देखो

शायद दो और कदम चलने की

हिम्मत मिल जाए


Sunday, January 6, 2019

नही पता..

नही पता
क्या सही
क्या गलत,
किसे पता
नहीं पता ।
है कारवां
जो चल पड़ा
बिना दिशा,
बिना राह,
जाना कहां
नही पता ।
है गुमशुदा
जो ख्वाब था
जो आग थी
जो नाज़ था
क्यों मिट गया
नहीं पता।
महसूस हो
वो कांच हूं
जलता रहा
जो आंख में
 क्यों ना दिखा
 नहीं पता।
 कल आएगा
 इस रात की
 होगी सुबह
 फिर क्या पता
ये संग रहा
नहीं पता।

Thursday, October 30, 2014

तुम रहो..तो मै रहूँ..

तुम कहो,
न मै कहूँ।
मै सुन सकूँ,
जो तुम सुनो।
जो तुम सुनो,
वो मै कहूँ,
जो मै कहूँ,
तुम सुन सको।
है रास्ते तो एक ही,
जो तुम चलो,
जो मै चलूँ।
फिर एक क्यों,
न साज़ हो,
जो तुम सुनो,
जो मै सुनूँ।
मै जो करूँ,
वो तुम करो,
जो तुम कहो,
मै वो करूँ।
फिर न गलत,
जो मै करूँ,
जो तुम करो,
है वो सही।
है एक ही,
दिशा मेरी,
वही दिशा,
जो तुम चुनो।
तो संग चले,
ये काफिला,
तुम खुश रहो,
मै खुश रहूँ।
हो साथ जो कि इस तरह-
कि तुम रहो,
तो मै रहूँ,
कि मै रहूँ,
तो तुम रहो..





Wednesday, October 8, 2014

चिआ..


बचपन का सपना था..
या जीवन का एक फटा सा पन्ना शायद..
नन्हें परों ने मिलकर बुना था उम्मीदों का महल..
जाने फिर जो हुआ वह था कि नहीं जायज़..
धुंधला कर मिट गया उन उम्मीदों का कल..
पंखों ने पर उड़ान नहीं छोड़ी..
दिशाएँ बदली,  बदली मंज़िल..
बदल गयी चिआ की तस्वीर..
न बदली जो मन के मन में..
वो नन्हेंपन की यादों की तासीर..
उन मीठे पलों की मासूमियत..
अक्सर कानों में बुदबुदा जाती है..
उन नन्हें परों की जब याद आती है..

Sunday, February 24, 2013

shadows

there is no light where i am
no air to breathe
no space to live
n im not free to go where i can
bounded in myself
tied down by my will
blinded by my logics
n rendered helpless by my intellectual skills
suffocated n exhausted
dark, empty, dreadful n numb..
shadows of my existance
where my life had ended
n chapters of my cruel past had begun
i look around this shadow
to dig deep n find for me
n although i find none
this is where i have to be
shadows  can never b d sun

तुम को क्या मालूम..

अधखिली सी इक कली तुम को क्या मालूम कीमत नहीं है कोई जो चुरा ले जाए कोई भंवरा तुमसे तुम्हारी सादगी तरस जाती होंगी  वो ओस की बूंदे हलके से छू ...