Sunday, January 6, 2019

नही पता..

नही पता
क्या सही
क्या गलत,
किसे पता
नहीं पता ।
है कारवां
जो चल पड़ा
बिना दिशा,
बिना राह,
जाना कहां
नही पता ।
है गुमशुदा
जो ख्वाब था
जो आग थी
जो नाज़ था
क्यों मिट गया
नहीं पता।
महसूस हो
वो कांच हूं
जलता रहा
जो आंख में
 क्यों ना दिखा
 नहीं पता।
 कल आएगा
 इस रात की
 होगी सुबह
 फिर क्या पता
ये संग रहा
नहीं पता।

तुम को क्या मालूम..

अधखिली सी इक कली तुम को क्या मालूम कीमत नहीं है कोई जो चुरा ले जाए कोई भंवरा तुमसे तुम्हारी सादगी तरस जाती होंगी  वो ओस की बूंदे हलके से छू ...