Thursday, October 30, 2014

तुम रहो..तो मै रहूँ..

तुम कहो,
न मै कहूँ।
मै सुन सकूँ,
जो तुम सुनो।
जो तुम सुनो,
वो मै कहूँ,
जो मै कहूँ,
तुम सुन सको।
है रास्ते तो एक ही,
जो तुम चलो,
जो मै चलूँ।
फिर एक क्यों,
न साज़ हो,
जो तुम सुनो,
जो मै सुनूँ।
मै जो करूँ,
वो तुम करो,
जो तुम कहो,
मै वो करूँ।
फिर न गलत,
जो मै करूँ,
जो तुम करो,
है वो सही।
है एक ही,
दिशा मेरी,
वही दिशा,
जो तुम चुनो।
तो संग चले,
ये काफिला,
तुम खुश रहो,
मै खुश रहूँ।
हो साथ जो कि इस तरह-
कि तुम रहो,
तो मै रहूँ,
कि मै रहूँ,
तो तुम रहो..





Wednesday, October 8, 2014

चिआ..


बचपन का सपना था..
या जीवन का एक फटा सा पन्ना शायद..
नन्हें परों ने मिलकर बुना था उम्मीदों का महल..
जाने फिर जो हुआ वह था कि नहीं जायज़..
धुंधला कर मिट गया उन उम्मीदों का कल..
पंखों ने पर उड़ान नहीं छोड़ी..
दिशाएँ बदली,  बदली मंज़िल..
बदल गयी चिआ की तस्वीर..
न बदली जो मन के मन में..
वो नन्हेंपन की यादों की तासीर..
उन मीठे पलों की मासूमियत..
अक्सर कानों में बुदबुदा जाती है..
उन नन्हें परों की जब याद आती है..

तुम को क्या मालूम..

अधखिली सी इक कली तुम को क्या मालूम कीमत नहीं है कोई जो चुरा ले जाए कोई भंवरा तुमसे तुम्हारी सादगी तरस जाती होंगी  वो ओस की बूंदे हलके से छू ...